अहमदाबाद में पिंक बॉल से किस गेंदबाज को मिलेगी मदद, जानिए पिछले डे नाइट मैच का रिजल्ट
आम तौर पर डे नाइट टेस्ट मैच में तेज गेंदबाजों का पलड़ा भारी रहता है. लेकिन क्या भारत में भी ऐसा होगा. पिछली बार भारत में हुए कोलकाता टेस्ट में टीम इंडिया की ओर से सभी विकेट तेज गेंदबाजों के खाते में गए थे. ऐसे में अहमदाबाद में भी क्या यही होगा. ऐसा शायद ही हो, क्योंकि पिछले डे नाइट टेस्ट में भारत के सामने बांग्लादेश जैसी टीम थी, लेकिन इस बार इंग्लैंड है. जाहिर है भारत सिर्फ पेस के सहारे इस मैच में नहीं उतर सकता. खुद टीम इंडिया के कुछ बल्लेबाज मानते हैं कि इस बार यहां पर बॉल टर्न कर सकती है.
ईएसपीएन क्रिक इन्फो के अनुसार, ऐसे में जब सभी स्विंग और सीम की बात कर रहे हैं, अहमदाबाद में गेंद कुछ और ही रंग दिखा सकती है. रोहित शर्मा भी यही महसूस कर रहे हैं. उनका कहना है कि यहां पर बॉल टर्न होगी. उन्होंने कहा, हम इसी के अनुसार तैयारी कर रहे हैं, हालांकि आखिरी फैसला मैच वाले दिन पिच को देखकर किया जाएगा.
पिंक बॉल कैसे करेगी रिएक्टडे नाइट टेस्ट मैच में पिंक बॉल का इस्तेमाल होता है. पिंक बॉल और लाल बॉल में सबसे बड़ा अंतर कलर कोटिंग को लेकर होता है. लाल बॉल के लेदर पर रंग का इस्तेमाल डाय के द्वारा किया जाता है. वहीं पिंक बॉल पर कई परत का इस्तेमाल होता है. और इन कोटिंग्स को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए गुलाबी गेंद को लाख की अतिरिक्त परत के साथ समाप्त किया जाता है. कोलकाता में जब भारत ने पहली बार डे नाइट टेस्ट मैच का आयोजन किया था, उस समय खिलाड़ियों ने कहा था कि पिच और हवा में पिंक बॉल उम्मीद से ज्यादा तेज आ रही थी. इतना ही नहीं फील्डर्स को ज्यादा सख्त और भारी भी लगी थी. लंबे समय तक चलने वाली चमक के कारण गेंद को स्विंग करने में भी मदद मिलती है. कभी कभी तो उम्मीद से ज्यादा.
लेकिन यह चमक तब तक रही जब ईडन गार्डन में क्यूरेटर ने पिच पर 6 मिमी घास छोड़ दी. तब यह एक कठिन निर्णय नहीं था, क्योंकि भारत के पास एक ऐसा सीम आक्रमण था जो बांग्लादेश के मुकाबले बहुत बेहतर था. लेकिन अब मुकाबला इंग्लैंड से है, ऐसे में अब घास को पिच पर रहने का फैसला काफी सोच समझकर करना होगा.
किसके लिए बेहतर डे नाइट टेस्ट मैच
डे नाइट टेस्ट मैच होते हुए अभी बस 6 साल ही हुए हैं. इसमें अब तक 15 टेस्ट मैच हुए हैं. इन मैचों में अब तक तेज गेंदबाजों का दबदबा रहा है. इन मैचों में 24.47 की औसत से 354 विकेट तेज गेंदबाजों ने लिए हैं. वहीं स्पिनरों के खाते में 115 विकेट आए हैं. अगर कोलकाता टेस्ट की बात की जाए तो उस मैच में दोनों पारियों में सभी 20 विकेट भारत के तेज गेंदबाजों ने ही लिए. स्पिनरों आर अश्विन और रविंद्र जडेजा के हाथ में सिर्फ 7 ओवर आए. इसमें भी उन्हें कोई विकेट नहीं मिला.
मोटेरा पर ज्यादा घास की उम्मीद नहीं
डे नाइट टेस्ट में सीम और स्विंग की मदद ज्यादातर क्यूरेटर के ऊपर होती है, जो पिच पर अतिरिक्त घास छोड़ते हैं; ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गुलाबी गेंद सख्त रहे और लंबे समय तक अपनी चमक बरकरार रख सके. टेस्ट मैच शुरू होने से पहले मोटेरा की पिच पर इतनी घास थी, कि पिच और ग्राउंड में भेद कर पाना मुश्किल था. लेकिन एक दिन पहले तक काफी घास को हटाया जा चुका था. इसके बाद अंदाजा लगाया जा सकता है कि मैच के दिन तक इस पर ज्यादा घास नहीं बचेगी. इस समय इंग्लैंड की टीम में दुनिया में सबसे अच्छा और सबसे विविध पेस अटैक है. यदि पिच पर बहुत कम या कोई घास नहीं है, तो हमें एक गुलाबी गेंद के लिए ब्रेस करना पड़ सकता है, जो कि खराब हो जाती है.
गेंद की दृश्यता
कोलकाता में जब पिछली बार डे नाइट टेस्ट मैच हुआ था, उस समय सबसे ज्यादा चर्चा गुलाबी गेंद की दृश्यता को लेकर हुई थी. उस मैच में बांग्लादेश के चार खिलाड़ियों के सिर पर बाउंसर लगे थे. उस मैच में दो कन्कशन सब्सट्यूट खिलाडियों का इस्तेमाल किया गया था. उस समय चेतेश्वर पुजारा ने कहा था कि लाइट में खेलना थोडा चुनौतीपूर्ण तो है.
ओस का क्या होगा रोल
मोटेरा टेस्ट मैच से पहले चेतेश्वर पुजारा का कहना है कि मैच के फाइनल सेशन में ओस सेट हो सकती है. इसके कई परिणाम हो सकते हैं. ईडन गार्डन में मैच के दौरान भारत की पारी में सिर्फ एक बार गेंद बदली गई थी. ऐसा 59वें ओवर में तब किया गया जब गेंद का आकार बदल गया. पुरानी बॉल ओस को सोखने लगती है. एसजी के मार्केटिंग डायरेक्टर पारस आनंद के अनुसार, हमें विश्वास है कि एसजी गुलाबी गेंद में काम होने के बाद यह ओस होने पर भी अपने आकार को बनाए रखने में मदद करेगी. अगर बॉल का आकार नहीं बदलता है तो यह गीली होने पर स्विंग होना बंद कर देती है. ऐसे में स्पिनरों को भी बॉल को पकडना मुश्किल हो सकता है.
दूसरी ओर, ओस पड़ने से बल्लेबाजों को थोड़ी आसानी होती है. ऐसे में गेंद कम घुमावदार गति के साथ बल्ले पर बेहतर तरीके से आता है. 2016 में पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के बीच दुबई डे-नाइट टेस्ट में बल्लेबाजों के हावी होने के पीछे यह एक महत्वपूर्ण कारक था, जिसमें गीली गेंद को टर्न और रिवर्स स्विंग में मुश्किल होती थी.